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राष्ट्रों के दिन लद गये।

राष्ट्रों के दिन लद गये। 



लेकिन अभी भी वे बने हैं , और वे ही सबसे बड़ी समस्या है । विश्व का सिंहावलोकन करने पर विचित्र अहसास मन में उभरता है कि हमारे पास सब कुछ है , बस हमें एक मानवता की जरूरत है । उदाहरण के लिए , इथियोपिया में लोग मर रहे थे - प्रतिदिन एक हजार लोग - और यूरोप में करोड़ों डॉलर की कीमत का अन्न सागर में डुबोया जा रहा था । बाहर से देखनेवाला कोई भी प्राणी सोचेगा , मानवता पागल हो गई है । 

हजारों लोग भूखों मर रहे हैं और मक्खन और अन्य खाद्य वस्तुओं के अंबार सागर में डुबोये जा रहे हैं । लेकिन इथियोपिया से पाश्चात्य जगत को कोई लेना - देना नहीं है । उनकी चिंता इतनी ही है कि उनकी अर्थ - व्यवस्था बच जाये और उनकी यथापूर्व स्थिति ( स्टेटस - को ) बनी रहे । और अपने आर्थिक ढांचे की रक्षा करने की खातिर वे उस भोजन को विनष्ट करने को तैयार हैं जो हजारों लोगों की जानें बचा सकता था । 

 समस्याएं विश्वव्यापक हैं , समाधान भी विश्वव्यापक होने चाहिए । और मेरी समझ बिलकुल साफ है कि चीजें ऐसी जगहों में हैं जहां उनकी जरूरत नहीं है ; और अन्यत्र सारा जीवन ही उन पर निर्भर करता है । विश्व शासन का अर्थ है : इस भूगोल की समग्र परिस्थिति का सर्वेक्षण करना , और चीजों को वहां भेजना जहां उनकी जरूरत है । 

मानवता एक है । और एक बार हम एक विश्व की भाषा में सोचने लगें तो फिर सिर्फ एक अर्थव्यवस्था होगी । पिछली बार अमेरिका ने अपने खाद्य पदार्थ डुबो दिये .... उन्हें डुबोने का खर्च ही लाखों डॉलर था । यह उन पदार्थों की कीमत नहीं है , बल्कि सागर तक ले जाने और उसमें डुबोने की कीमत है । और अमेरिका में ही तीन करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास भरपेट खाना खाने के लिए पैसे नहीं हैं । 

 यह किसी और को देने का सवाल नहीं है , उनके अपने ही लोगों को देने का सवाल है । लेकिन समस्या जटिल हो जाती है , क्योंकि यदि तुम तीन करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन देने लगते हो तो बाकी लोग मांगने लगेंगे : हम अपना भोजन क्यों खरीदें ? फिर चीजों के भाव गिरने लगेंगे । 

गिरते हुए भावों के साथ किसानों को अधिक पैदाइश करने में कोई रस नहीं रह जायेगा , सार क्या है ? अर्थव्यवस्था में गड़बड़ी पैदा करने के डर से उन्होंने तीन करोड़ लोगों को सड़कों पर भूखे मरने दिया । और अतिरिक्त पैदावार को समुद्र में डुबोते रहे । इतना ही नहीं , अमेरिका में तीन करोड़ लोग ज्यादा खाने से पीड़ित हैं । 

विज्ञान उनकी पूरी सहायता कर सकता है । तरीका बहुत आसान है । शायद ज्यादा खानेवाले के मस्तिष्क की थोड़ी - सी शल्यक्रिया करने की जरूरत है , और उनका ज्यादा भोजन लेना विदा हो जायेगा । तीन करोड़ लोग अतिरिक्त भोजन करने की बीमारियों से मर रहे हैं , तीन करोड़ लोग भोजन के अभाव से मर रहे हैं । थोड़ी सी समझ , और छह करोड़ लोगों की जान फौरन बचायी जा सकती है । लेकिन संपूर्ण विश्व को एक इकाई की भांति देखने के लिए विहंगम दृष्टि चाहिए । 

हमारी समस्याओं ने हमें ऐसे हालातों में खड़ा कर दिया है जहां हमें मनुष्य को रूपांतरित करना पड़ेगा- -उसकी प्राचीन परंपराएं , उसके संस्कार । क्योंकि वे संस्कार और वे शिक्षा - प्रणालियां और वे धर्म जिनका मनुष्य अब तक अनुसरण करता रहा है , उनके कारण ही यह संकट पैदा हुआ है । यह सार्वभौम आत्मघात हमारी सारी संस्कृतियों , हमारे दर्शनों और हमारे सारे धर्मों का आत्यंतिक परिणाम है । 

उन सबने अजीब - अजीब तरीकों से इसमें योगदान दिया है । क्योंकि किसी ने कभी समय के संबंध में कभी नहीं सोचा । हर कोई समग्र की चिंता किये बिना छोटे से अंश पर ध्यान देता रहा । और सबसे खतरनाक बात यह है कि सभी राष्ट्र युद्ध और विजय के नाम पर यह आत्मघात कर रहे हैं । सब बचकानापन है , मूढ़ता है । तुम देख सकते हो , जिस तरह राष्ट्र किसी भी कपड़े के टुकड़े को अपने झंडे का सम्मान देते हैं , और अगर उसे उतारा गया तो उनकी पूरी गरिमा और स्वतंत्रता खो गई ! तुम राष्ट्रीय झंडे का अपमान नहीं कर सकते । 

मनुष्य की मतिमंदता की यह स्थिति है । यह एक सीधा - सरल तथ्य है कि पृथ्वी अखण्ड है । इतने अनेक राष्ट्रों की जरूरत क्या है , सिवाय इसके कि इससे बहुत से लोगों के अहंकार की दौड़ पूरी होती है ? जर्मनी आप्रवासियों से भयभीत क्यों हो और जर्मन नागरिकों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित क्यों करे , जबकि धरती अतिरिक्त आबादी के नीचे दबी जा रही है ? 

यदि एक विश्व शासन होता तो आबादी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में स्थलांतरित हो सकती जब भी जनसंख्या घटने लगे , उसकी पूर्ति अन्य देशों में बढ़ती हुई आबादी से हो सकेगी । यदि एक विश्व शासन हो , राष्ट्रों के टुकड़े न हों , पासपोर्ट और वीसा और अन्य सब मूढ़तापूर्ण शर्तो के बिना इधर से उधर जाने की स्वतंत्रता हो , तो समस्याएं सरलता से हल हो सकती हैं ।

Source - एक महान चुनौती (मनुष्य का स्वर्णिम भविष्य) 


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